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Sunday 3 September 2017

झारखण्ड के गढ़वा जिले के भंडरिया थाना क्षेत्र के बरकोल गाँव में 10 आदिवासी (परिवार ) समुदाय के साथ मार पिट कर पुलिस के हवाले करने के बाद पुलिस हिरासत में रमेश मिंज की मौत हो जाने सम्बन्ध में

सेवा में
श्रीमान अध्यक्ष महोदय
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग नई दिल्ली

विषय:- झारखण्ड के गढ़वा जिले के भंडरिया थाना क्षेत्र के बरकोल गाँव में 10 आदिवासी (परिवार ) समुदाय के साथ मार पिट कर पुलिस के हवाले करने के बाद पुलिस हिरासत में रमेश मिंज की मौत हो जाने सम्बन्ध में

महोदय
हम आपका ध्यान झारखण्ड के गढ़वा जिले के भंडरिया थाना क्षेत्र की ओर आकृष्ट कराना चाहूँगा जहा पर 19 अगस्त की रात गढ़वा के भंडरिया थाना क्षेत्र के बरकोल गांव में जो हुआ, वह समाज में फैले सांप्रदायिक तनाव किस हद तक बढ़ गया है, का नमूना है. उस रात मानवता को शर्मसार करने वाली घटना हुई. जो अमानवीय कृत्य हुए, उसे पढ़-सुनकर रुह कांप जाये.  गांव के ही एक व्यक्ति ने 1000 रुपया में अपने बूढ़े बैल को गांव के ईसाई आदिवासी बेचा. बेचने वाले अच्छी तरह से जानते थे कि ईसाई आदिवासी बूढ़े जानवरों को खरीद कर उसके साथ क्या करते हैं. इधर, जब आदिवासी ने बैल को मार दिया, तब ग्रामीणों ने गांव में बसे छह आदिवासी परिवार पर हमला कर दिया. महिला-पुरुष के साथ मारपीट की. ग्रामीणों ने बगल के गांव के रमेश मिंज को भी अपने कब्जे में कर लिया. वह मोटरसाइकिल से मांस लेकर अपने गांव लौट रहा था.ग्रामीणों ने उसे जैम कर पिटा और पुलिस के हवाले कर दिया इसके साथ उक्त समुदाय ने जम कर उत्पाद मचाया. उन्हें खूब मारा. जिसके हाथ जो लगा उसी से पिटायी शुरू कर दी. ईसाई आदिवासी गंभीर रूप से घायल हो गए. उनमें से कई चलने लायक भी नहीं बचे थे. उसी हालत में ग्रामीणों ने 10 ईसाई आदिवासी पुरुषों को पुलिस पिकेट को सौंप दिया.  बैल का पूंछ लाकर पुलिस के सामने फोटो खिंचवाया. जिसके बाद पुलिस ने सभी को जेल भेज दिया. पुलिस ने 10 आदिवासियों को जेल भेजने से पहले उनका इलाज भी नहीं कराया. जिस कारण जेल भेजे जाने के एक दिन बाद ग्रामीणों की पिटाई से जख्मी रमेश मिंज की मौत हो गयी. रमेश मिंज की मौत के बाद पुलिस ने उनकी पत्नी के बयान पर अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की. इसके साथ ही प्रशासन ने रमेश मिंज की पत्नी को 20 हजार रुपया का चेक, पांच हजार रुपया नगद व 35 किलो राशन बातौर मुआवजा दिया. साथ ही रमेश मिंज की पत्नी को विधवा पेंशन देने का आश्वासन दिया. गांव की ताजा स्थिति यह है कि जिन छह घरों पर ग्रामीणों ने हमला किया था, उन घरों में अब एक भी पुरुष नहीं बचे हैं. सभी जेल में हैं. घर में सिर्फ महिलाएं, बच्चे व एक वृद्ध बचे हैं. सभी डरे-सहमें हैं.यह खबर न्यूज़ विङ्ग अख़बार में दिनांक 3 सितम्बर 2017 को प्रकाशित की गई जिसका लिंक http://www.newswing.com/en/Tribal%20people%20who%20had%20been%20subjected%20to%20mobilization%20in%20the%20name%20of%20restricted%20meat%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AC%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%A4%20%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B8%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%20%E0%A4%97%E0%A4%A2%E0%A4%BC%E0%A4%B5%E0%A4%BE%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%20%E0%A4%AE%E0%A5%89%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%86%20%E0%A4%86%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%80 संलग्न है।

अतः महोदय से नम्र निवेदन है की उक्त मामले को संज्ञान में लेते हुए पुरे मामले की न्यायिक जाँच एक विशेष टीम या फिर आयोग स्वयं करते हुए उस गाँव के पीड़ित परिवार को न्याय दिया जाए साथ ही पीड़ित परिवारों को डर है की पुलिस उन्हें फर्जी केस में फसा कर लम्बे समय तक जेल में डाल सकती है। इधर गाँव के पीड़ित परिवार के पुरुष जेल होने के कारण  महिलाओ के बिच आजीविका का सवाल उत्पन्न हो गया है।उक्त मामले में पीड़ित को हुए नुकशान की क्षति पूर्ति के लिए मुआवजा भुगतान कराया जाए।जिन लोगो ने इस तरह की घटना को अंजाम दिया है उनके ऊपर प्राथमिकी दर्ज करवाते हुए क़ानूनी कार्यवाही प्रारम्भ की जाए साथ ही पुरे मामले में कार्यवाही की एक प्रति हमें भी उपलब्ध कराइ जाए।
भवदीय
ओंकार विश्वकर्मा
मानवाधिकार कार्यकर्त्ता
डोमचांच कोडरमा झारखण्ड
संपर्क 9934520602

खबर विस्तार से

आदिवासियों को पीटा, पुलिस को सौंपा, एक की मौत.

- पुलिस ने पहले 10 आदिवासियों को जेल भेजा, हिरासत में एक की मौत होने के बाद  मृतक के पत्नी के बयान पर दर्ज किया केस.

PRAVIN KUMAR

Garhwa, 03 September : 19 अगस्त की रात गढ़वा के भंडरिया थाना क्षेत्र के बरकोल गांव में जो हुआ, वह समाज में फैले सांप्रदायिक तनाव किस हद तक बढ़ गया है, का नमूना है. उस रात मानवता को शर्मसार करने वाली घटना हुई. जो अमानवीय कृत्य हुए, उसे पढ़-सुनकर रुह कांप जाये.  गांव के ही एक व्यक्ति ने 1000 रुपया में अपने बूढ़े बैल को गांव के ईसाई आदिवासी बेचा. बेचने वाले अच्छी तरह से जानते थे कि ईसाई आदिवासी बूढ़े जानवरों को खरीद कर उसके साथ क्या करते हैं. इधर, जब आदिवासी ने बैल को मार दिया, तब ग्रामीणों ने गांव में बसे छह आदिवासी परिवार पर हमला कर दिया. महिला-पुरुष के साथ मारपीट की. ग्रामीणों ने बगल के गांव के रमेश मिंज को भी अपने कब्जे में कर लिया. वह मोटरसाइकिल से मांस लेकर अपने गांव लौट रहा था.

बुरी तरह मारा-पीटा और कर दिया पुलिस के हवाले

ग्रामीणों ने जम कर उत्पाद मचाया. उन्हें खूब मारा. जिसके हाथ जो लगा उसी से पिटायी शुरू कर दी. ईसाई आदिवासी गंभीर रूप से घायल हो गए. उनमें से कई चलने लायक भी नहीं बचे थे. उसी हालत में ग्रामीणों ने 10 ईसाई आदिवासी पुरुषों को पुलिस पिकेट को सौंप दिया.  बैल का पूंछ लाकर पुलिस के सामने फोटो खिंचवाया. जिसके बाद पुलिस ने सभी को जेल भेज दिया. पुलिस ने 10 आदिवासियों को जेल भेजने से पहले उनका इलाज भी नहीं कराया. जिस कारण जेल भेजे जाने के एक दिन बाद ग्रामीणों की पिटाई से जख्मी रमेश मिंज की मौत हो गयी. रमेश मिंज की मौत के बाद पुलिस ने उनकी पत्नी के बयान पर अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की. इसके साथ ही प्रशासन ने रमेश मिंज की पत्नी को 20 हजार रुपया का चेक, पांच हजार रुपया नगद व 35 किलो राशन बातौर मुआवजा दिया. साथ ही रमेश मिंज की पत्नी को विधवा पेंशन देने का आश्वासन दिया. गांव की ताजा स्थिति यह है कि जिन छह घरों पर ग्रामीणों ने हमला किया था, उन घरों में अब एक भी पुरुष नहीं बचे हैं. सभी जेल में हैं. घर में सिर्फ महिलाएं, बच्चे व एक वृद्ध बचे हैं. सभी डरे-सहमें हैं. 

झारखंड-छत्तीसगढ़ सीमा पर है बरकोल गांव

बरकोल गांव झारखंड और छतीसगढ़ सीम पर स्थित है. इसी गांव में एक टोला कोच्ली है. बरकोल गांव के बगल में ही टेगारी गांव है. दोनों गांव गढवा जिला के बरगड़ प्रखंड मुख्यालय से करीब 22 किमी दूर टेंहड़ी पंचायत में अता है. बरकोल गांव में एक टोला है, जिसका नाम कोच्ली है. गांव चारो तरफ से जंगल से घिरा हुआ है.  गांव में कुल पांच टोले हैं. गांव में एसटी, एससी, ओबीसी, और सामान्य जाति के लोग रहते हैं. बरकोल के कोच्ली टोला में उरांव जनजाति के छह परिवार रहते हैं. इस गांव के बाद छतीसगढ़ की सीमा शुरु हो जाता है. 

पीटते-घसीटते पुलिस पिकेट ले गए थे

गौ हत्या और प्रतिबंधित मांस खाने के आरोप में सैंकड़ों की संख्या में गांव वालों ने उरांव जनजाति के छह परिवार पर हमला कर दिया. परिवार के सभी पुरुष, महिला और बच्चो की पिटाई करनी शुरु कर दी. फिर सभी को पीटते-घसीटते हुए पुलिस पिकेट ले गए. घटना के बारे में कोच्ली टोला के अनीत गिद्द की पत्नी फिलीन गिद्द ने बताया कि रात का खाना खाकर हमलोग सो रहे थे. रात के करीब आठ-नौ बजे बिहारी  यादव, रामबचन सिंह, गहनू साव के साथ 30-40 लोग आए. हमलोगों के साथ मारपीट करने लगे. मारपीट करते हुए व  घर के पुरुषों को मारते-घसीटते ले गए. इससे पहले टोला के सात लोगों के साथ भी मारपीट कर उन्हें एक जगह रखा गया था. फिर एक जगह पर सभी को ग्रामीणों ने पीटा. बच्चों तक को नहीं छोड़ा. कुछ देर बाद टोला के सभी पुरुषों को कही ले जाया गया. रात में कुछ पता नहीं चला. सुबह में पता चला कि सभी को बरकोल पुलिस पिकेट ले जाया गया है. टोला में अब सिर्फ महिला, बच्चे व एक वृद्ध बचे हैं. 
दो किशोरों ने भाग कर जान बचायी
भीड़ जब जिन आदिवासियों की पिटाई कर रही थी, उसमें दो युवक भी थे. दोनों की उम्र 16-17 के करीब है. दोनों ने किसी तरह भाग कर जान बचायी. लेकिन अब वह डरे हुए हैं. उन्हें लगता है कि गांव के लोग कभी भी हमला कर उनकी हत्या कर सकते हैं. 
पुलिस ने जो प्राथमिकी दर्ज की
रमेश मिंज की मौत को लेकर पुलिस ने उनकी पत्नी अनिता मिंज के बयान पर प्राथमिकी दर्ज की है. प्राथमिकी में घटना का जो विवरण दिया गया है. उसके मुताबिक 19 अगस्त, 2017 की शाम रमेश मिंज अपने खेत से खाद डाल कर घर लौट रहा था. वह अपनी मोटर साइकिल में प्रतिबंधित मांस ले कर जा रहा था. रमेश मिंज और उनके भाई उमेश मिंज धान के खेत में यूरिया खाद डालने के लिए बरकोल के कोच्ली रानी डूबा गए थे. दोनों भाइ स्पलेंडर और पल्सर मोटर साइकिल से यूरिया खाद लेकर गए थे. जब शाम में खेत से लौट रहे थे, तब बरकोल गांव में लाठी, डंडा, टांगी और तलवार से लैस 100 से अधिक लोगों ने उन्हें रोक दिया. गौ ह्त्या का अरोप लगाकर दोनों को गालियां दी. फिर दोनों के साथ मारपीट की. भीड़ में से कुछ लोग चिल्ला रहे थे, मार डालो सबको, कोई भी बच न पाए. उनके साथ छह-सात  महिलाओं की भी पिटाई की गयी. उनके कपडे खींचे, साथ ही आठ-10 साल की बच्चियों के साथ भी मारपीट की गयी. 
सुनिए मारिया गिद्द ने क्या बताया-01

पिकेट पर से भगा दिया : मारिया गिद्द
मरिया गिद्द ने बताया कि रात में भीड़ हमारे पति को कहां ले गई, हमें पता नहीं चला. सुबह में पता चला कि हमारा आदमी पिकेट में है. जब हमलोग पिकेट पर गए, तो हमें उनसे मिलने नहीं दिया गया. पिकेट से हमलोगों को भगा दिया गया. 

रात में सात और सुबह में तीन लोगों ने लाये थे ग्रामीण : पिकेट इंचार्ज
बरकोल में इंडिया रिजर्व बटालियन (आइआरबी) का पिकेट है. पिकेट के जवान इलाके में नक्सल विरोधी अभियान चलाते हैं. आईआरबी के अधिकारी विरेंद्र कुमार सिंह ने बताया 19 अगस्त की रात करीब 3.00 बजे 200 से अधिक ग्रामीण पिकेट पहुचे थे. हमें लगा की पिकेट पर नक्सल का हमला हो गया है. लेकिन थोड़ी देर में पता चल गया कि मामला क्या है. ग्रामीण बरकोल गांव के थे. सभी अपने साथ सात लोगों को मारपीट कर लाये थे. देख कर ही लगता था कि सात लोगों को बहुत ज्यादा पीटा गया है और उन्हे धसीटा भी गया है. हम लोगों ने सातों को अपने कस्टडी में ले ली. क्योंकि मना करने पर ग्रामीण हंगामा करने लगे थे. हमें यह भी लगा कि अगर सातो लोगों को कस्टडी में नहीं लेते हैं, तो ग्रामीण उनकी हत्या भी कर सकते हैं. इसके बाद सुबह में ग्रामीण दुबारा आ गए. इस बार तीन अन्य लोगो को लेकर अये थे. साथ ही प्रतिबंधित मांस भी ग्रामीण लेकर आए थे. 
वो कौन लोग थे, जिन्होंने प्रतिबंधित मांस के साथ फोटो खिंचवाने को मजबूर किया
पिकेट प्रभारी से जब इस संबंध में पुछा गया तो उन्होंने कहा कि गांव के ही लोग सुबह में आये थे. उनके साथ कुछ वैसे युवक भी थे जो पत्रकार जैसे दिख रहे थे. उन्होंने अरोपियों से पूछताछ भी की थी. फिर ग्रामीणों ने ही आरोपियों को बैल का पूंछ, सिंग व चमरा पकड़वा कर फोटो भी खिंचवाया. 
हमारे पास नहीं है इलाज की व्यवस्था : विरेंद्र सिंह
पिकेट के पुलिस अधिकारी विरेंद्र सिंह से जब यह पूछा गया कि आपने घायलों का इलाज क्यों नहीं कराया, तो उन्होंने कहा कि हमारे पास उपचार की कोई व्यवस्था नही है. ग्रामीणों की पिटाई से घायल लोग पिकेट में दर्द से तड़पते रहें. करीब आठ-दस घंटा तक इलाज के बिना ही पिकेट में ही रहे. 
जिन 10 लोगों को पीटा गया
जिन 10 लोगों के साथ ग्रामीणों ने मारपीट की थी और पिकेट में लाकर पुलिस को सौंप दिया था. उनमें रमेश मिंज (बाद में जेल हिरासत में मौत हो गयी), उमेश मिंज, फिकड़ो गिद्द, जमुना गिद्द, मेखड़ा उरांव, बलदेव उरांव, अनिल उरांव, सुनील उरांव, छोटकू उरांव और कमलेश उरांव का नाम शामिल है. जो दो लोग भागने में सफल रहे थे, उनके नाम मंटू कुजुर और सुरेन्द्र गिद्द है. 
क्या कहते है पिकेट के पुलिस अधिकारी, देखें वीडियो.... 
इलाज कराये बिना जेल भेज दिया पुलिस ने, एक की हुई मौत
बरकोल पुलिस पिकेट के प्रभारी ने सुबह में घटना की जानकारी वरीय अधिकारियों को दी. जिसके बाद 20 अगस्त की सुबह करीब 11 बजे भंडरिया थाना की पुलिस सभी 10 आदिवासियों को ले गयी. भंडरिया थाना की पुलिस ने सभी को समुदायिक स्वथ्य केन्द्र भडारीया में इलाज कराया. डॉ. विजय किशोर रजक और डॉ विशेश्वर कुमार के देखरेख मे सभी का इलाज किया गया. डॉ विशेश्वर कुमार ने बताया कि सभी को दिन के करीब 2.00 बजे समुदायिक स्वाथ्य केन्द्र में लाया गया था. जहां से सात लोगो का फिटनेश प्रमाण प्रत्र जारी किया गया. शेष तीन लोगों रमेश मिंज, बालदेव मिंज और अनीत मिंज को गंभीर चोट होने की वजह से सदर अस्पताल रेफर किया गया. इसके एक दिन बाद 21 अगस्त को पुलिस ने तीनों को गढ़वा सदर अस्पताल में भरती कराया. सदर अस्पताल ने घायल सभी 10 आदिवासियों का फिटनेस रिपोर्ट पुलिस को दिया. जिसके बाद सभी को गढ़वा मंडल कारा भेज दिया गया. पुलिस ने सभी को खिलाफ प्रतिबंधित मांस लाने-ले जाने और इस्तेमाल करने की धाराएं लगा कर भंडरिया थाना में प्राथमिकी दर्ज की थी. गढ़वा सदर अस्पताल के चिकित्सक ने सभी का फिटनेस प्रमाण पत्र देने से पहले सही तरीके से उनके जख्मों की जांच ही नहीं की. यही कारण है कि जेल भेजे जाने के दूसरे ही दिन रमेश मिंज की मौत हो गयी. 

पैर व गर्दन की हड्डी टूट गयी थी, पुलिस ने इलाज कराने के बजाय जेल भेज दिया : अनिता मिंज

मॉब लिंचिंग में अपनी जान गंवाने वाले रमेश मिंज की पत्नी अनिता मिंज ने बताया कि घटना से एक दिन पहले रमेश मिंज छतीसगढ़ गये थे. घटना के दिन अपने घर लौटे. सुबह में उन्होने हमसे पैसा मांगा और हमने 200 रुपये उन्हें दिए. रमेश मिंज घर में यह बोल कर निकले थे कि हम कोच्ली   जा रहे है. खेत में खाद डालने. इसके बाद हम भी दातून लाने के लिए जंगल चले गए. शाम में जब मैं घर लौटी तब तक रमेश मिंज वापस नहीं लौटे थे. हमें लगा लगा वह मेरे मयका में रूक गये होंगे. अगले दिन हमें सूचना मिली की हमारे पति को गांव के कुछ लोगों ने पीटा है. क्योंकि वह प्रतिबंधित मांस लेकर आ रहे थे. तब हमलोग भागे-भागे थाना पहुंचे. उनको थाने में खाना खिलाया. वह सिर्फ एक रोटी ही खा पाये. उस वक्त उनके पैर से खून निकल रहा था. उन्होने बताया की पैर टूट गया है. हाथ की अंगूली और गर्दन भी टूटा हुआ है. फिर पुलिस उन्हें गढ़वा ले गयी. 22 अगस्त को पुलिस ने खबर भेजा कि गढ़वा चले आयें, आपके पति को सेवा की जरूरत है. जब हम वहां गए तो वह मृत मिलें. पुलिस ने हमारे ससुर से सादे कागज पर हस्ताक्षर करवाया. इसके बाद पोस्टमार्टम करा कर शव को घर भेज दिया. 
अब हम कैसे पालेंगे बच्चों को 
रमेश मिंज पर उनका पूरा परिवार आश्रित था. उनकी मौत के बाद उनकी बेटी सुप्रिया मिंज (16 साल), बेटा रूपेश मिंज (12 साल), बेटी नेहा मिंज (10साल), बेटा रविकांत मिंज (03 साल) के सामने खाने-पीने की समस्या उत्पन्न हो गयी है.  घर में अनिता मिंज के अलावा कोई नहीं है. अनिता मिंज कहती हैं कि अब हम बच्चों को कैसे पालेंगे. 
23 अगस्त को प्रशासन ने दिया मुआवजा
23 अगस्त 2017 की दोपहर में पिकेट प्रभारी लक्ष्मीकांत पांडेय और सीआरपीएफ के इंस्पेक्टर गुरुदीस सिंह के साथ बरगढ़ प्रखंड के बीडीओ बिपिन कुमार भारती ने रमेश मिंज के घर पहुंचे. बीडीओ ने रमेश मिंज की पत्नी अनीता मिंज को 20 हजार रुपया का चेक, पांच हजार नगद और 50 किलो  चावल दिया. साथ ही विधवा पेंशन पाने के लिए प्रमाणपत्र सौंपा. अधिकारियों ने रमेश मिंज के बच्चों को अपने स्तर से पढ़ाने का आश्वासन भी दिया. प्रशासन द्वारा मुअवजा देने के बाद यह सवाल उठता है कि जब रमेश मिंज प्रतिबंधित मांस ले जाने का आरोपी था, तो फिर मुआवजा क्यों दिया गया.
पुलिस की आधी-अधूरी कार्रवाई
26 अगस्त को रमेश मिंज की पत्नी के बयान पर पुलिस ने 39 नामजद और 100 अज्ञात लोगों के खिलाफ भंडरिया थाना में प्राथमिकी दर्ज की. प्राथमिकी दर्ज करने के बाद पुलिस ने नौ ग्रामीणों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. रमेश मिंज की पत्नी का कहना है पुलिस मुख्य अरोपियों को बचा रही है. हमे इंसाफ चाहिए. सभी अरोपियों पर कार्रवाई हो. 
घटना के पीछे की क्या है असली कहानी
बरकोल गांव के घासी टोला निवासी फिकड़ो गिद्द ने 19 अगस्त को 1000 रुपये में एक बूढ़ा बैल खरीदा था. फिकड़ो गिद्द एक साल पहले भी प्रतिबंधित मांस की खरीद-बिक्री करने के आरोप में जेल गया था. पैसे के लालच में गांव के लोग भी अपने बूढ़े गाय-बैल फिकड़ो गिद्द को ही बेचते हैं. दिन के करीब 1.00 बजे फिकडो गिद्द को बैल के साथ कोच्ली की तरफ जंगल में जाते देखा गया. वहां उसने बैल को मार कर मांस तैयार किया. कुछ लोग उसका पीछा कर रहे थे. पीछा करने वालों ने शाम के करीब तीन बजे इसकी सूचना बरकोल गांव में लोगों को दी. फिकड़ो ने ही रमेश मिंज को मांस दिया था. जिसके साथ ग्रामीणों ने रमेश मिंज व उसके भाई को पकड़ा था. इसके बाद ग्रामीणों ने न सिर्फ उन दोनों के साथ मारपीट की. बल्कि गांव के कोच्ली टोला में रहने वाले छह अन्य आदिवासी परिवार के साथ भी मारपीट की. ग्रामीणों ने 10 आदिवासियों के साथ मारपीट करने के बाद सभी को पुलिस को सौंप दिया. शुरुआत में पुलिस ने एक तरफ कार्रवाई की. ग्रामीणों ने जिन लोगों की पिटाई की, उनकी ठीक से इलाज नहीं करायी. मारपीट करने के आरोपी ग्रामीणों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. बल्कि प्रतिबंधित मांस ले जाने के अरोप में जिन 10 आदिवासियों को खिलाफ पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की, उसमें गवाह के रुप में पिटाई करने वाले ग्रामीणों का नाम दर्ज किया. जब रमेश मिंज की मौत हो गयी, तब पुलिस ने गवाह बने उन नौ लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. 
घटना पर क्या कहते है बरकोल गांव के लोग 
बरकोल गांव के लोगों का कहना है कि रमेश मिंज की पत्नी निर्दोष लोगोंं को फंसा रही है. गांव के लोगोंं ने एक बजे रात में ही रमेश व छह लोगोंं को पुलिस पिकेट पहुंचा दिया था. उस समय लोगोंं की स्थिति ज्यादा खराब नहीं थी कि किसी की मौत हो जाए. ग्रामीणोंं को संदेह है कि पिकेट में पुलिस ने भी सात लोगोंं की पिटाई की. ग्रामीणोंं का कहना है कि हमारे गांव से ही बूढ़ा बैल खरीद के ले जाया गया था. अौर यह भी सच है कि आदिवासी प्रतिबंधित मांस का सेवन करते हैं. यह कोई नई बात नहीं है. वैसे कई ग्रामीणोंं को इस बात का दुख है कि घटना में रमेश मिंज की मौत हो गयी. 


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