The Sound of Voicelass

test

Breaking

Post Top Ad

Your Ad Spot

Friday 6 July 2018

झारखंड के राजधानी रांची से सटे खूंटी जिले के घाघरा गांव में पुलिस के दमन चक्र से पुलिस की गोली से बिरसा मुंडा नामक व्यक्ति की मौत हो जाने के संबंध में

सेवा में
श्रीमान अध्यक्ष महोदय
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग नई दिल्ली

विषय:- झारखंड के राजधानी रांची से सटे खूंटी जिले के घाघरा गांव में पुलिस के दमन चक्र से पुलिस की गोली से बिरसा मुंडा नामक व्यक्ति की मौत हो जाने के संबंध में

महोदय
हम आपका ध्यान झारखंड के राजधानी रांची से सटे खूंटी जिले की ओर आकृष्ट कराना चाहेंगे जहा पर 27 जून 2018 को पुलिस द्वारा दमनचक्र चलाया गया जिसमें एक ग्रामीण बिरसा मुंडा की मौत पुलिस की गोली से हो गया। यह ख़बर न्यूज विंग न्यूज पोर्टल पर दिनांक 6 जुलाई 2018 को प्रकाशित की गई जिसके लिंक https://newswing.com/what-happened-in-ghaghra-chamdyeh-village-on-june-27-listen-to-the-story-of-the-whole-story/ संलग्न है।
अतः महोदय से नम्र निवेदन है कि उक्त घटना की विशेष टीम द्वारा जांच करवाया जाए साथ ही पीड़ित परिवारों को उचित मुआवजा भुगतान कराया जाए। पूरे मामले में कार्यवाही की एक प्रति हमे भी उपलब्ध कराया जाए।
भवदीय
ओंकार विश्वकर्मा
राज्य संयोजक
मानवाधिकार जन निगरानी समिति झारखंड
डोमचांच कोडरमा झारखंड 825418

ख़बर विस्तार से

Ranchi : पिछले कुछ दिनों में राजधानी रांची से सटे खूंटी जिले में घटनाक्रम तेजी से घटे और बदले. पांच लड़कियों से गैंगरेप, हाउस गार्ड के जवानों का ग्रामीणों द्वारा अपहरण और पत्थलगड़ी पर बढ़ता विवाद. इनसब में सबसे ज्यादा कोई विषय अगर चर्चा और विवादों में रहा तो वह है पत्थलगड़ी. पत्थलगड़ी को लेकर खूंटी के ग्रामीण और प्रशासन आमने-सामने है. जिले के चामडीह गांव में बिरसा मुंडा की मौत का मामला भी विवादों में है. ग्रामीण इसे जहां पुलिस की गोली से हुई मौत बता रही है. वही पुलिस पिटाई से हुई मृत्यु करार दे रही है.

इधर 26 जून को घाघरा, चामडीह गांव में जो कुछ भी हुआ, उससे ग्रामीणों में दहशत भी है और आक्रोश भी.  इस बीच न्‍यूज विंग की टीम घाघरा में पत्‍थलगड़ी समर्थकों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई के प्रत्‍यक्षदर्शियों तक पहुंची. पुलिस की खौफ के कारण प्रत्‍यक्षदर्शियों ने अपनी पहचान छिपाने की शर्त पर पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी.


न्यूज विंग से बात करते हुए प्रत्‍यक्षदर्शियों ने कहा कि 26 जून को घाघरा, मानगड़ा और मंदरूडीह तीन गांवों में पत्थलगड़ी होना था. इस कार्यक्रम में बहुत दूर-दूर से ग्रामीण जुटे थे. 26 जून की रात पुलिस घाघरा गांव पहुंची और ग्रामीणों को घेर लिया. हमने पुलिस-प्रशासन को समझौता के लिए प्रस्‍ताव दिया. लेकिन उन्‍होंने प्रस्‍ताव को नामंजूर कर दिया. इसके बाद 27 जून की सुबह करीब  8:30 बजे हम आदिवासियों पर पुलिस ने हमला कर दिया और मारपीट शुरू कर दी. हमले के दौरान पुलिस बलों की तादात एक हजार के करीब होगी और हम आदिवासी ग्रामीण 10 हजार के करीब थे. पुलिस ने हम पर आंसू गैस के गोले छोड़े और गोलियां चलाई. पुलिस ने हमले से पहले हमें किसी तरह की चेतावनी भी नहीं दी. पुलिस की यह कार्रवाई हमारे ग्राम सभा को भंग करने का प्रयास था.

उस दिन की घटना के बताते हुए ग्रामीणों ने कहा कि पुलिस ने सबसे पहले हम पर लाठीचार्ज किया. जिससे वहां भगदड मच गयी. उसके बाद पुलिस ने आंसू गैस  के गोले दागे और गोलियां चलाई. इस दौरान चामडीह के बिरसा मुंडा पर पहले लाठी-डंडे से हमला किया गया, उसके बाद उस पर गोली चलाई गई. पुलिस ने बिरसा पर पीछे से लेकिन करीब से गोली चलाई थी. जिससे वह वहीं गिर पड़ा और उसकी मौत हो गई.


बिरसा की मौत के बाद सभी लोग वहां से जान बचाकर भाग निकले. ग्रामीणों ने कहा कि हमारे जितनी भी छोटी-बडी गाड़ियां थी, उसे भी तोड़-फोड़ दिया. आयोजन के लिए जो भी इंतजाम था, जैसे बाजा, मंच, कुर्सियां सभी कुछ तोड़ दिये गये. हमारी गाड़ियां वहीं पर पड़ी रह गईं. मामला शांत होने के बाद जब हम वहां गये तो कई मोटरसाइकिल नहीं थे. ग्रामीणों ने बताया कि इस घटना के बाद पुलिस गांवों में जबरन घुस रही है और हम जैसे युवाओं की धरपकड़ की जा रही है.


प्रत्‍यक्षदर्शी ने बताया कि 27 जून को पत्‍थलगड़ी की गई. यह पूर्वजों से चली आ रही हमारी परंपरा है. अपनी पूर्वजों की स्‍वशासन की इसी परंपरा को बचाने की हम कोशिश कर रहे हैं. यह हमारे गांव-समाज का रीति-रिवाज है. इसी स्‍वशासन को बचाने के लिए हम पत्थलगड़ी कर रहे हैं. पुलिस-प्रशासन इसका गलत व्‍याख्या कर रही है. इसकी जानकारी हमने पहले आरटीआई के द्वारा भी मांगी, लेकिन अभी तक जवाब नहीं मिला. प्रशासन का पत्थलगड़ी का गलत व्‍याख्‍या करने का कोई हक नहीं है.


ग्रामीणों का कहना है कि हम अपने गांव और अपनी जमीन पर पत्थलगड़ी करते हैं, उसमें उन्‍हें क्‍या तकलीफ है. यह हमें नहीं बताया जा रहा है. पिछले 70 सालों से हम आदिवासी रोजगार के लिए तरस रहे हैं. यहां हमारे विकास के नाम पर बरगलाया जा रहा है.


सरकार कहती है कि आदिवासियों की जमीन नहीं छीनेंगे, जंगल नहीं छीनेंगे. लेकिन सच यह है कि सीएनटी-एसपीटी कानून और संविधान में संशोधन करके हमारे जंगल-जमीन को छीना जा रहा है. यह आदिवासियों के साथ गलत हो रहा है.


No comments:

Post a Comment

NHRC order to Compensation of Rs 5 lakh paid in case of death due to electric shock

  Case No.- 183/34/11/2023 NATIONAL HUMAN RIGHTS COMMISSION (LAW DIVISION) * * * MANAV ADHIKAR BHAWAN, BLOCK-C, G.P.O. COMPLEX, INA, NEW DEL...

Post Top Ad

Your Ad Spot