कोडरमा वासियों को बहुत खुशी तब हुआ था जब यहाँ से झारखण्ड की शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए मंत्री चुनी गई थी, और कोडरमा को रविन्द्र राय जैसे संसद का नेत्रित्व मिला दोनों एक ही पार्टी और सरकार के ,यह दोनों खुशी का मतलब यह साफ़ था की कोडरमा का पूर्ण विकास और शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव होने और सुधार होने के आसार लोगो में दिखा था, पर कोडरमावासी का लगभग 2 साल से अधिक इंतजर में गुजर गया, जिले में मंत्री तो मिली और शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ चढ़ कर बहुतो उद्घाटन पर उद्घाटन किया गया, जो दिखाता है की आने वाला दिन कोडरमा के लिए बेहतर है. इस बात से नाकारा भी नहीं जा सकता. पर सवाल आज भी जेहन में जो दौड़ रहा है वह यह है की कोडरमा में शिक्षा और बुनियादी शिक्षा के जो वर्तमान हालत है उसे सुधारने पर भी पहल किया जाये..?स्वाभाविक है यह सवाल आज हर उन लोगो के दिमाग में दौड़ रहा होगा जो अपने बच्चो की पढाई के लिए मोटी फीस निजी विद्यालयों में देते है, और कभी किताब के नाम पर तो कभी ड्रेस के लिए अभिभावक दुधारू गाय बन गए है,कोडरमा वासियों को याद होगा की एक बड़ा आन्दोलन तब किया गया था जब फीस और पुनः नामांकन का मामला सामने आया था उस वक्त निजी विद्यालयों की कमर में मोच आई थी पर पट्टी और मजबूत बन गई और कोडरमा के निजी विद्यालय ने अपना एक संगठन निर्माण कर लिया और उस संगठन के संरक्षक भी ऐसे लोग बने है जिनके कंधे पर कोडरमा की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने का जिम्मा है, एक तरफ जहा निजी विद्यालय जिले में कुकुरमुत्ते की तरह गली गली चौक चौराहों पर खुले है जिनका नियम कानून से कोई लेना देना है है, तो वही दूसरी तरफ सरकारी स्कुल बस बच्चो का भोजनालय बन कर रह गया है, कई विद्यालय शिक्षक के आभाव का दंश झेल रहे है तो कई विद्यालय में मुलभुत सुविधाओ का आभाव है, उन्ही विद्यालयों में एक है चन्द्रावती स्मारक उच्च विद्यालय डोमचांच, जिसे प्लस टू का घोषणा तो कर दिया गया है पर हालत बद से बदतर है (आप भी देखे) https://youtu.be/56_Tk2I_ybQ अब आप सब सोच रहे होंगे की वो कौन लोग है? जिले में विधायक और संसद के बहुतो प्रतिनिधि चुने हुए है जिनके जिम्मे में कोडरमा के गरीबो की आवाज को सुन कर उसका समाधान करना है पर हमें नहीं लगता की कोई संसद प्रतिनिधि या विधायक प्रतिनिधि इस काम में दिलचस्पी ले रहे होंगे, इन प्रतिनिधियों को बस एक पद चाहिए था जो मिल गया और उस पद के संरक्षण में अपने धंधे पानी का जुगाड़ लगा बैठे है.. जो शिक्षा के प्रतिनिधि है वो कानून क्या सुधरेंगे वही शिक्षा अधिकार कानून की धज्जी उड़ा रहे है, ऐसे में यह सवाल बनता है की जिले में लगभग कई सरकारी विद्यालय है जिनके हालत इतने बुरे है की उन्हें देखने वाला कोई नहीं है वर्तमान में मामला सतगावा के सरकारी विद्यालय का सामने आ रहा है जिसमे बच्चो का नामांकन ही नहीं लिया जा रहा है, तो वही दूसरी और ढाब पंचायत जिसे संसद ने गोद लिया है पर आज उस गाँव की सच्चाई और जमीन को देखा जाए तो वहा के लोगो पिने को पानी के लिए विवास है तो एक और आजीविका के सवाल को ले कर, राशन दुकान वाले की तो खानदानी चलती है वहा, इन मामलो से संसद प्रतिनधि को लिखित रूप से अवगत कराया गया पर सुनने वाला कोई नहीं, ढाब का बंधना गाँव के लोगो के खाते में प्रधानमंत्री आवास योजना का पैसा पड़ा है और उनके पास घर बनाने को जमीन है, जिले के जंगली इलाको में तराजू के जगह पर पत्थर से तौल कर अनाज दिया जाता है और 1 किलो गरीबो को बोल कर अनाज कम दिया जाता है मतलब खुले आम रंगदारी, बंगाखालर के इलाके में बच्चो को बरसात के दिनों में नदी पार कर के विद्यालय जाना पड़ता है कपडे गीले हो जाते है, तो वही मरकच्चो में कई गाँव आज भी नदी का पानी पिने को विवस है की उन्हें शुद्ध पेयजल नहीं मिल पा रहा है, और बिजली की तो पूछिए मत..? जिले में बात बात पर आन्दोलन और सरकार के काम की बड़ाई करने वालो की कमी नहीं है पर जिले की एक सच्चाई यह भी है की यहाँ के जमीनी सवाल को उठाने वाला कोई नहीं है, सवाल शिक्षा का है,? सवाल भोजन का है? सवाल आवास का है? पर समाधान ......?
-ओंकार
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Friday 7 July 2017
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जब कोडरमा में मंत्री और संसद ने अपने प्रतिनधि चुने तब क्या हुआ...?
जब कोडरमा में मंत्री और संसद ने अपने प्रतिनधि चुने तब क्या हुआ...?
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