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Sunday 5 February 2017

छात्र -छात्रओं के भविष्य से हो रहा खिलवाड़ ! जिम्मेवार कौन?


झारखण्ड के कोडरमा जिले का डोमचांच प्रखंड के चंद्रावती स्मारक उच्च विद्यालय से....
सरकार शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए हर वर्ष करोड़ों रुपये खर्च करती है। शौचालय को लेकर अभियान चला रही है बावजूद इसके सरकारी स्कूलों का बुरा हाल है। स्कूलों में न तो सफाई विशेष रुप से दिखती है । और ना ही बच्चो के पीने योग्य पानी की व्यवस्था, कहने को तो केम्पस मे तीन चापाकल है पर तीनों मे गंदा पानी निकलता है शिक्षक बताते है बरसात मे कीड़े भी निकलते है पर कोई इसको लेकर गम्भीर नही, जिसके कारण बच्चे घर से ही पानी लेकर स्कूल जाते है , जो नही लाते वह केम्पस के बाहर का रुख करते है प्यास बुझाने के लिये, बच्चों को पढ़ाने के लिये पर्याप्त शिक्षक भी नही है, शौचालय की  व्यवस्था में भी बच्चों के साथ दोहरा बर्ताव किया जाता है। मात्र एक शौचालय है वह भी गंदा पड़ा रहता है जिसमे छात्राएँ कुछ जाती है । और एक शौचालय शिक्षक अपने लिए बंद रखते है। बाकी के छात्र छात्राएँ खुले मे ही जाने को विवश है ,अक्सर अभिभावकों को शिक्षकों से शिकायत रहती है कि सरकारी शिक्षक स्कूल में समय पास करने के लिए आते हैं। सरकारी स्कूलों में सुरक्षा के भी पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं। केम्पस का गेट टूटा दिखता है।  जिसके कारण कई बार चोरी की घटना घट चुकी है,खेलने के सामानो का भी आभाव दिखने को मिला, ऐसा हाल प्रखंड के सबसे बड़े सरकारी स्कूल चंद्रावती स्मारक उच्च विद्यालय का है, जहाँ विद्यालय भवन जर्जर हो चुका हैं।बच्चे डर डर कर भवन मे पढाई करने को मजबूर है,प्रधानाध्यापक कपिल देव प्रजापति की माने तो कई अधिकारी नेता देख चुके है यहाँ का हाल सुधरने का सिर्फ भरोसा दिलाते कर चल जाते है, पर हाल ज्यों के त्यों रहता है, यही नहीं, स्कूल में 1100 से ऊपर छात्र - छात्राएँ शिक्षा ग्रहण करते है, जिसमे अग्रेजी संस्कृत बायलोजी जैसे विषय के शिक्षकों के पद भी में रिक्त पड़े हैं। ऐसे में शिक्षकों के अभाव में बच्चों को उचित शिक्षा नहीं मिल पा रही है। बच्चो ने बताया मैट्रिक की परीक्षा फरवरी माह के 17 तरीख से होने वाला है पर यहाँ शिक्षक की कमी के कारण तीनों विषय का तैयारी बेहतर ढंग से नही हो पाया हम क्या करे जिनके अभिवावक आर्थिक रुप से मजबूत है वह निजी ट्यूशन का रुख कर रहे परीक्षा को ध्यान मे रखते हुए ,पर जो गरीब तबके से है वह लाचार है सोचने को की मेरी परीक्षा की तैयारी कैसे होगी। उन्ही बच्चों ने एक बच्ची है https://youtu.be/jTAqORnScNI (काजल का बयान) काजल कुमारी जो इसी विद्यालय के कक्षा 10 में पढ़ती है। काजल बताती है की हम 10 किलो मीटर दूर मसनोडीह से विद्यालय जाते है। रोज का 20 रुपया किराया लगता है। मेरे पास पैसा नहीं रहने के कारण हम मात्र दो माह विद्यालय जा सके इसी बिच इलाज के आभाव में मेरी माँ की मृत्यु हो गई , पाप दूसरा शादी कर लिये और मेरा भी तबियत ख़राब हो गया, इस कारण हम 2017 में आयोजित होने वाले माध्यमिक परीक्षा में फार्म नहीं भर पाये की हमने अपनी पढाई गरीबी और विद्यालय की दुरी की वजह से नहीं कर पाये। विद्यालय से साइकिल नहीं मिला और शिक्षक भी नहीं थे। जिससे मेरा पढाई अधूरा रह गया। वहीँ दूसरी ओर अभिभावकों का कहना है कि अब उनके बच्चों को कंप्यूटर शिक्षा भी नहीं दी जाती। एक तरफ़ प्रधानमंत्री डिजिटल इंडिया का सपना दिखाते है तो दूसरी तरफ़ उनके बच्चो के लिये स्कूलों में जो कंप्यूटर मौजूद हैं उनमें से अधिकतर क्या सभी खराब पड़े हैं ,ऐसी स्थिति उत्पन होने से सरकारी स्कूलों की हालत उस स्थिति में पहुंच गई है कि एक रिक्शा चालक भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने से कतराने लगा है। यही कारण है कि आज निजी स्कूलों का दायरा बढ़ता जा रहा है। हालांकि निजी स्कूलों में भी हालात अधिक ठीक नहीं हैं। तमाम निजी स्कूल संस्थानों के मालिक स्कूल की भव्यता दिखाकर अभिभावकों की जेब काटने में लगे हैं। शिक्षा का अधिकार कानून को अस्तित्व में आए कई साल पूरे हो गए हैं। बावजूद इसके यह परियोजना पूरी तरह से परवान नहीं चढ़ पाई है। सर्व शिक्षा अभियान को बेशक सरकार बढ़ा चढ़ाकर पेश कर रही हो, मगर हकीकत कुछ और ही है। विभिन्न इलाकों में चल रहे सर्व शिक्षा अभियान के केंद्रों में अधिकारी मात्र दिखावे के लिए ही कालोनियों में जाकर बच्चों को स्कूल में दाखिला कराने के लिए के लिए प्रेरित करते हैं। ये अधिकारी अपनी नौकरी बचाने के लिए मात्र खानापूर्ति करते हैं।
फैक्ट फाइंडिंग टीम
ओंकार विश्वकर्मा (मानवाधिकार कार्यकर्त्ता)
अंकु कुमार गोस्वामी (पत्रकार)
विनती विश्वकर्मा (वीडियो वोलेंटियर)

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