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Sunday 16 April 2017

कोडरमा जिले मे क्रशर मिल के डस्ट से बढ़ रहा है: सिलोकोशिस


झारखण्ड का कोडरमा जिला का डोमचांच प्रखंड जो जिले में पत्थर उद्योग में प्रथम स्थान रखता है इस जिले में जहा लगभग 500 से अधिक पत्थर खदान है तो वही दूसरी तरफ 3000 के लगभग क्रशर मिल है, जिसमे दिन रात पत्थर तोड़ने का काम ठेका मजदूरो से किया जाता है। इन क्रशर और खदानों में काम करने वाले मजदुर किसी युनियन या संगठन से नहीं होते जिस कारण इनका भरपूर शोषण आर्थिक और शारीरिक रूप से होता है, वही दुसरी तरफ देखे तो इन क्रशर में काम करने वाले अधिकतर मजदुर स्वास रोग से ग्रषित पाए जाते है, जिनकी उम्र क्रशर डस्ट के कारन कम हो जाता है और ये उम्र से पहले मर जाते है। जब हम आम नागरिक पर होने वाले प्रभाव को देकते है तो पाते है की डोमचांच भीषण वायु प्रदूषण के संकट से जूझ रहे हैं ,  और इन मामलो में प्रशासन मौन धारण कर बैठी है,लोगो की परेशानियों को लेकर प्रशासन गम्भीर नही ! जिले मे स्टोन चिप्स के साथ ट्रकों बड़े बड़े गाडियां से धुएँ ,धूल निकलने के कारण डोमचांच एवं इसके आसपास क्षेत्र के पेड़-पौधे व जंगलों का भीषण विनाश हो रहा है तथा लोग श्वांस और टीबी,चर्म रोग संबंधी बीमारियों से पीड़ित हो रहे हैं। वायु प्रदूषण का मुख्य कारण यहां पर नीरू पहाड़ी से लेकर पुरनाडीह तक दस किमी क्षेत्र में फैले सैकड़ों क्रशर के साथ अत्यधिक मात्रा मे बड़े गाडियां से निकलने वाले व उड़ने वाला धूलकण है। सड़क के किनारे दोनों ओर लगभग 500 की संख्या में संचालित क्रशर मिलों में से 10 प्रतिशत मालिकों के पास ही प्रदूषण का अनुज्ञप्ति प्राप्त है, शेष अवैध तरीके से ही संचालित हो रहे हैं, जिसके कारण आम आदमी के साथसाथ वन पर्यावरण को भी भारी क्षति हो रही है। सड़क किनारे शीशम आदि के दर्जनों बेशकीमती पेड़ सूख चुके हैं और कई पेड़ों का सुखाना जारी है। प्रदूषण बोर्ड के मानकों के मुताबिक मुख्य सड़क से 200 मीटर की दूरी पर क्रशर मिल स्थापित करने तथा सड़क के सामने ऊंची दीवार देने , पानी छिड़काव इत्यादि के साथ कई प्रावधान है। लेकिन सारे नियम कानून को धत्ता बताते हुए विभागीय लोगों की मिलीभगत से लोग प्रदूषण फैलाने में पिछले 20-25 वर्षो से लगे हुए हैं। हवा के झोंके के साथ क्रशर मिलों से उड़ने वाले धूलों का गुब्बार जनजीवन पर बुरा असर डाल रहा है तो दुसरी और खेत बंजर होते जा रहे है और खदान की बढती गहराई से कई जल श्रोत समाप्त हो चुके है और कई समाप्त होने के कगार पर है। नीरू पहाड़ी से डोमचांच तक की दूरी तय करने वाले दोपहिया, तीन पहिया व चारपहिये वाहनों में बैठे लोगों के आँख माथा पूरे शरीर मे गर्दा भरने के साथ श्वास के माध्यम से फेफड़ों मे जाने से काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। परिणामस्वरूप यहां पर कार्यरत मजदूर व अन्य लोग कई तरह के रोगों से ग्रसित होते जा रहे हैं। इन क्रशर मिलों के आसपास की उपजाऊ भूमि बंजर जमीन में तब्दील होती जा रही है पैदावार लगातार घटते जा रहा है। इस संबंध में पूंजीपतियों के आगे विरोध ग्रामीण चाह कर भी करने से कतराते हैं ताकि धूलकण खेतों में नहीं आये। तत्कालीन प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हजारीबाग से जाँच करने कूछ माह पूर्व आये प्रदूषण नियंत्रण के  अधिकारी अशोक कुमार ने वायु मे प्रदूषण की मात्रा ज्यादा होने की बात को स्वीकार करते हुए उपायुक्त से मिल कर कारवाई का आश्वसन मौजूद ग्रामीणों को दिया था ,हाल के महीनों मे सांसद प्रतिनिधि बसंत मेहता इस मामला को लेकर उपायुक्त को आवेदन देकर कारवाई की माँग कर चुके हैं,
वायु प्रदूषण को लेकर पर आज तक विभाग द्वारा कोई कड़ा रुख नहीं अपना गया है। वहीं दूसरी ओर बोर्ड में लंबित प्रदूषण अनुज्ञप्तियों को आज तक कई वर्षो के बाद भी एनओसी निर्गत नहीं किया जा सका है। इसका मुख्य कारण यह है कि  क्रशर मालिक नियम व शर्तो को पूरा नहीं कर पाते हैं। इसका सबसे बड़ा असर यहां के पर्यावरण व वन विभाग पर पड़ रहा है। वहीं जंगलों का दायरा घटने से जल और वायु का ह्रास हो रहा है। प्रचंड गर्मी, जलस्तर का घटना और जंगलों का नष्ट होना भविष्य में यहां के लोगों के लिए महंगा साबित हो सकता है। और आने वाले दिनों में कोडरमा के लोगो के बिच गहरा जल संकट आ सकता है। जिससे निपटने के लिए प्रशाशन के पास कोई ठोस रणनीति नहीं है।
रिपोर्ट
: अंकु कुमार गोस्वामी (पत्रकार)
ओंकार विश्वकर्मा   (सामाजिक कार्यकर्त्ता)

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