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Tuesday 11 April 2017

झारखण्ड के कोडरमा जिला में सरकारी स्वास्थ्य सुविधा बदहाल रहने के कारण निजी प्रेक्टिस करने अवैध झोला छाप डाक्टरो की चांदी काटने व मरीजो के जान लेने के सम्बन्ध में

सेवा में
श्रीमान अध्यक्ष महोदय
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग नई दिल्ली

विषय:- झारखण्ड क्व कोडरमा जिला में सरकारी स्वास्थ्य सुविधा बदहाल रहने के कारण निजी प्रेक्टिस करने अवैध झोला छाप डाक्टरो की चांदी काटने व् मरीजो के जान लेने के सम्बन्ध में

महोदय
हम आपका ध्यान झारखण्ड के कोडरमा जिले के सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओ व् संसाधनों की कमी रहने के कारण जिले में लगभग 7 लाख लोगो का स्वास्थ्य सुविधा मात्र 33 डाक्टरो के भरोसे है। जिससे जिले की स्वास्थ्य सुविधा लचर हाल में है। ऐसे में एक ओर जहा कुपोषित बच्चे सरकारी केंद्र में जाने के बजाये निजी क्लिनिक का रास्ता देखते है तो वही दूसरी और गरीब तबका झोला छाप डाक्टरो के चक्कर में पड कर अपना जान गवा रहे है। यह मामला दिनांक 11 अप्रैल 2017 को देनिक जागरण अख़बार में प्रकाशित की गई। जिसका लिंक http://m.jagran.com/jharkhand/koderma-15837144.html संलग्न है।
अतः महोदय से नम्र निवेदन है की उक्त मामले को गम्भीरता से लिया जाए और कोडरमा के आम जनता के स्वास्थ्य सुविधा को दुरूस्त करने हेतु हर स्वास्थ्य व् उप स्वास्थ्य केन्द्रों पर डाक्टर का नियमित बैठना सुनिश्चित करने के साथ साथ राज्य में स्वास्थ्य सुविधा दुरुस्त करने हेतु राज्य स्तरीय निशुल्क हेल्पलाइन सुरु करवाया जाए। और कार्यवाही की एक प्रति हमें भी उपलब्ध कराया जाए।

भवदीय
ओंकार विश्वकर्मा
मानवाधिकार कार्यकर्ता
डोमचांच कोडरमा झारखण्ड 825418
संपर्क 8934529602

खबर विस्तार से
स्वास्थ्य लोगों की मूलभूत आवश्यकता है। वहीं सभी लोगों तक स्वास्थ्य सेवा को पहुंचाना सरकार की सबसे अहम जिम्मेदारी है, लेकिन कोडरमा जिले की सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल यह है कि सरकारी स्वास्थ्य महकमे में मात्र 33 चिकित्सक और लगभग इतने ही कर्मचारी हैं। इसके अलावा कुछ सहिया और संविदा पर नियुक्त कुछ स्वास्थ्यकर्मी हैं। वहीं अन्य संसाधनों की बात करें तो सरकारी महकमे में भवन, बेड की भारी कमी है। रोगों की जांच की सुविधा भी नहीं के बराबर है। जबकि जिले की आबादी 7.5 लाख के करीब है। ऐसे में एक बड़ी आबादी का जीवन निजी क्षेत्र के चिकित्सकों के भरोसे है।

सरकारी व्यवस्था में वहीं लोग जाते हैं, जिनके पास कोई चारा नहीं है। दूसरी ओर निजी क्षेत्र में मरीजों को इलाज में भारी भरकम राशि चुकानी पड़ती है। यदि मर्ज गंभीर हो तो लोगों के घर व जमीन तक इसमें बिक जाते हैं। वहीं सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था में संसाधनों की भी घोर कमी है।

कोडरमा जिला अस्पताल को सदर अस्पताल का दर्जा मिले कई वर्ष हो चुके हैं, लेकिन सुविधाएं अभी भी अनुमंडल अस्पताल जैसी ही है। यहां संसाधनों, चिकित्सकों व स्वास्थ्य कर्मियों की कमी मरीजों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। वर्ष 2007 में जिले के अनुमंडल अस्पताल को सदर अस्पताल का दर्जा तो दे दिया गया, लेकिन पहलेवाली व्यवस्था में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं हुआ है। इसके अलावे न तो चिकित्सक की पूरी व्यवस्था की गई है और ना ही कर्मियों की। इसके अलावे दो घाटियों के बीच एक्सीडेंटल जोन में अवस्थित होने के कारण प्राय: सड़क दुर्घटनाओं के मरीज आते हैं। एक साथ दो से ज्यादा मरीज के आ जाने से जमीन पर लिटाकर मरीजों का इलाज किया जाता है। व्यवस्था में कमी के कारण वैसे मरीजों का मात्र प्राथमिक उपचार के बाद रेफर कर दिया जाता है।

प्रखंडों की स्थिति और भी खराब

जिले के सदर अस्पताल की स्थिति यह है तो ग्रामीण क्षेत्रों में क्या हाल होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। जिले के विभिन्न प्रखंडों में स्थापित स्वास्थ्य उपकेंद्रों में दिन में तो चिकित्सक मिल भी जातें हैं। लेकिन रात्रि में न तो चिकित्सक होते हैं और ना स्वास्थ्य कर्मी। प्रखंडों में साधन व सुविधा की स्थिति अत्यंत ही बदतर है। जिसके कारण पूरे जिले में दुर्घटना के शिकार मरीजों को इलाज के लिए सदर अस्पताल ही भेजा जाता है।

खुद कुपोषित हैं कुपोषण उपचार केंद्र

जिले के कुपोषित बच्चों के उपचार के लिए सदर अस्पताल परिसर में कुपोषण उपचार केंद्र की स्थापना की गई है। लेकिन सही मायने में कुपोषण उपचार केंद्र अपने उद्देश्यों को पूरा करने में असफल साबित हो रहा है। कुपोषित बच्चों के इलाज के लिए स्थापित इस केंद्र में ऐसे बच्चों के आने की संख्या काफी कम रह रही है। केंद्र में संसाधन आवश्यकता के अनुरूप हैं नहीं। केंद्र में बच्चों को लाने का जिम्मा आंगनबाड़ी केंद्रों की सेविका, सहिया व एएनएम को दी गई है। इस कार्य में इन कर्मियों की बरती जा रही उदासीनता केंद्र की असफलता का प्रमुख कारण है। जबकि केंद्र संचालन के लिए एक चिकित्सक व चार एएनएम को रखा गया है।

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