कोडरमा : सादर अस्पताल की कुव्यवस्था जग जाहिर होने लगी है और उसके कई परिणाम सामने आने लगे है सदर अस्पताल की लचर व्यवस्था का खामियाजा लगातार मरीज व उनके परिजनों को भुगतना पड़ रहा है सदर अस्पताल के 100 शैय्या वाले नए भवन का उद्घाटन शिक्षामंत्री डॉ नीरा यादव ने किया था और उन्होंने कहा था पड़ोसी राज्य बिहार के लोगों को भी फायदा मिलेगा
बिहार को छोडिये यंहा सदर अस्पताल के प्रसव वार्ड में कोडरमा के प्रसूताओं का इलाज भी भगवान भरोसे हो रहा है पुराने भवन में आवश्यकता से काफी कम बेड होने की वजह से जमीन पर लिटाकर इलाज करना अस्पताल प्रशासन की मजबूरी बनी हुई है
1 लाख रुपया मुआवजा भुगतान करने का आदेश
ऐसा ही एक घटना 9 अप्रैल 2016 को हुई थी जहा सदर अस्पताल के डाक्टारो ने मानवीय संवेदना समाप्त कर एक महिला को प्रसव पीड़ा में छोड़ दिया था इस मामले पर मानवाधिकार कार्यकर्त्ता ओंकार विश्वकर्मा ने मानवाधिकार आयोग में शिकयत दर्ज कराइ थी जिनका वाद संख्या 830/34/12/2016 दर्ज कर के कार्यवाही प्रारंभ की गई जिसमे स्वास्थ्य सचिव झारखण्ड को नोटिस कर मामले में जवाब माँगा गया था। स्वास्थ्य सचिव झारखण्ड के रिपोर्ट में इसकी पुष्टि की गई जिसके बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उक्त मामले में राज्य सरकार के मुख्य सचिव को नोटिस कर पीड़ित परिवार को 1 लाख रुपया मुआवजा भुगतान करने का आदेश दिया है आयोग ने कहा है 6 सप्ताह के अन्दर पीड़ित परिवार को मुआवजा भुगतान किया जाए
क्या था मामला
प्रसव पीड़ा से परेशान महिला ममता देवी पति मुकेश साव निवासी मसकेडीह सरिया, परिजन महिला को दोपहर में लेकर अस्पताल पहुंचे थे तो मौजूद महिला चिकित्सक संध्या टोप्पनो नर्स को आवश्यक जांच करवाने व ऑपरेशन थियेटर तैयार करने को कहा महिला चिकित्सक संध्या टोपनो हजारीबाग चली गयी थी महिला चिकित्सक संध्या टोप्पनो के अनुपस्थित रहने पर नर्स ने डॉ अमरेंद्र कुमार को फोन किया था तो वो भी कोडरमा में मौजूद नहीं थे परिजनों का आरोप था कि प्रसव से जब महिला परेशान हो गयी तो उन्होंने ओपीडी में मौजूद चिकित्सक प्रवीण कुमार से ऑपरेशन करने का अनुरोध किया मगर उन्होंने कहा कि पहले ओपीडी का काम समाप्त होगा इसके बाद आपरेशन किया जायेगा बताया गया मरीज को बेहोश करने के लिए एनेशथेसिया चिकित्सक संदीप कुमार भी नहीं थे ऐसे में महिला का ऑपरेशन नहीं हो पाया प्रसव पीड़ा से परेशान महिला के परिजन अंतत: शाम पांच बजे महिला को लेकर होली फैमिली अस्पताल चले गये थे
क्या कहते है ओंकार विश्वकर्मा
आज झारखंड में स्वास्थ्य सेवा लचर हालात में है। कोई भी सरकारी स्वास्थ्य केंद्र हो या बड़े अस्पताल डॉक्टरों की मानवीय संवेदना मानवता के लिए समाप्त हो गई है। वह निजी क्लिनिक में सिर्फ पैसे कमाने में व्यस्त हो गए।यह कोई नया मामला नही है झारखंड के लिए। इस कार्यवाही से सरकार को गम्भीर होना चाहिए और स्वास्थ्य सेवा को दुरुस्त करते हुए ऐसे डाक्टरों की पहचान कर कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए।
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